महाराष्ट्र में ड्रैगन फ्रूट की खेती ने बदली लोगों की किस्मत, अब गन्ना-अंगूर छोड़कर यही उगा रहे हैं किसान
इन दिनों कई राज्यों में मौसम का दुष्प्रभाव देखने को मिल रहा है। ऐसे कई राज्य हैं जहां पर अब बरसात कम होने लगी है, इससे सीधे तौर पर किसान प्रभावित होते हैं। कम बरसात के कारण मिट्टी में नमी की कमी हो जाती हैं जिससे फसलों कि बुवाई कम होती है और किसानों का मुनाफा भी कम हो जाता है। इन समस्याओं को देखते हुए अब किसान वैकल्पिक खेती की तरफ ध्यान देने लगे हैं, जो किसानों के लिए अनुकूल हो और जिसमें किसानों को अच्छी खासी आमदनी भी हो।
ऐसी ही एक खेती है जिसे हम ड्रैगन फ्रूट (Dragon Fruit; पिताया फल; pitaya or pitahaya ) की खेती के नाम से जानते हैं। इस खेती में महाराष्ट्र के सांगली जिले के किसानों की रुचि दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। महाराष्ट्र का सांगली जिला देश में सूखा प्रभावित इलाकों में से एक है। यहां पर बेहद कम मात्र में बरसात होती है जो किसानों के लिए मुसीबत का सबब है। यहां के किसान पानी की कम उपलब्धता के बावजूद परंपरागत गन्ना-अंगूर की खेती कर रहे हैं।
अब कुछ दिनों से यहां के किसानों ने ड्रैगन फ्रूट की खेती को अपनाया है। इस खेती में पानी कम जरूरत होती है, इसके साथ ही अन्य फसलों की तरह इसमें देखभाल की भी उतनी जरूरत नहीं होती। सांगली में पिछले कई सालों से कुछ किसान कम संसाधनों के साथ ड्रैगन फ्रूट की खेती करके अच्छा खास लाभ काम रहे हैं।
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सांगली जिले के किसानों ने बताया कि ड्रैगन फ्रूट की खेती में पहली बार में अन्य फसलों की अपेक्षा ज्यादा निवेश होता है। लेकिन उस हिसाब से इसमें उत्पादन भी ज्यादा होता है, जिससे लागत बहुत जल्दी वसूल हो जाती हैं। इसके अलावा ड्रैगन फ्रूट के भाव भी अन्य फसलों की अपेक्षा ज्यादा होते हैं। पहली बार के बाद इसमें उतने ज्यादा निवेश की जरूरत नहीं होती।
सांगली जिले में ड्रैगन फ्रूट की खेती करने वाले कई किसानों ने बताया कि ड्रैगन फ्रूट की खेती में गन्ने की खेती की अपेक्षा मुनाफा ज्यादा होता है। अगर किसान गन्ने की खेती करके 1 लाख रुपये कमा पाते थे तो वहीं अब वो ड्रैगन फ्रूट की खेती करके 8 से 9 लाख रुपये तक कमा लेते हैं। इसके साथ ही पानी की कम जरूरत के साथ ही खेती की लागत में कमी के कारण ड्रैगन फ्रूट की खेती में दिमागी टेंशन भी कम होती है। इसके साथ ही इस फसल में ओलावृष्टि बारिश या सूखा से कुछ खास फर्क नहीं पड़ता।
यह फल ज्यादातर विदेशों में निर्यात किया जाता है। वहां पर इस फल की उचित कीमत मिलती है। सांगली जिले के कई किसानों ने बताया की वो पिछले कुछ सालों से अपने उत्पादन का एक बहुत बड़ा हिस्सा दुबई को निर्यात करते हैं। विदेशों के साथ ही भारत में भी ड्रैगन फ्रूट का चलन काफी बढ़ गया है, जिससे भारत के बड़े शहरों जैसे दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद, बेंगलुरु, चेन्नई, कोलकाता, सूरत, जयपुर और गुवाहाटी में यह फल लोगों द्वारा काफी पसंद किया जाता है और इस फल की काफी डिमांड रहती है।
ड्रैगन फ्रूट को साल में दो बार लगाया जा सकता है एक फरवरी और सितम्बर के महीने में इसको लगाते समय ध्यान रखना चाहिए की मौसम ज्यादा गर्म न हो जिससे की पौधे को ज़माने में दिक्कत न हो। जैसा की हमने ऊपर बताया है इसकी कटिंग को लगाना ज्यादा अच्छा होता है और उसके जल्दी से फल आने की गारंटी होती है। इसके फल सितम्बर से दिसंबर तक आते हैं इनको 5 से 6 बार तोडा जाता है।
इसको जैसा की हमने बताया है इसको किसी भी तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है दोमट मिटटी सबसे ज्यादा मुफीद होती है लेकिन क्योकि ये कैक्टस प्रजाति का पौधा है तो इसे कम उपजाऊ,पथरीली और कम पानी वाली जगह भी आसानी से उगाया जाता है। इसकी मिटटी में जल जमा नहीं होना चाहिए. ये पौधा कम पानी चाहता है. बेहतर होगा की इसको ऐसी जमीन में लगाया जाना चाहिए जहाँ पानी की निकासी की समुचित व्यवस्था हो और जहाँ पानी का ठहराब न हो।
ड्रैगन फल[/caption]
ड्रैगन फ्रूट्स ३ तरह के होते है. लाल रंग के गूदे वाला लाल रंग का फल , सफेद रंग के गूदे वाला पीले रंग का फल और सफेद रंग के गूदे वाला लाल रंग का फल. सभी तीनों तरह के फल भारत में उगाये जा सकते हैं. लेकिन लाल रंग के गूदे वाले लाल फल को भारत में ज्यादा प्राथमिकता दी जाती है. लेकिन इसकी उपज बाजार की मांग के अनुरूप करनी चाहिए. इसका बजन सामान्यतः 300 ग्राम से 800 ग्राम तक होता है और इसके फल की तुड़ाई एक पेड़ से 3 से 4 बार होती है।
ड्रैगन फ्रूट में कोई रोग नहीं आता है अभी तक ऐसा कुछ रोग इसका मिला नहीं है हाँ लेकिन ध्यान रहे जब इसके फूल और फल आने का समय हो उस समय मौसम साफ और शुष्क होना चाहिए आद्रता वाले मौसम में फल पर दाग आने की संभावना रहती है. रखरखाब में सबसे ज्यादा इसको लगाने के समय पर जरूरत होती है।